31 Jan 2012

हुल्लड़


उनकी आँखों से चाहत बहती चली गई,
हमने न रोका उन्हें...कहते हैं वो फिर शाम के आते ही चल दिए;
हमने बाट देखि नहीं थी, मालूम था वो नहीं आएँगे...
...आंसूं अब आते नहीं, खाली आँखों में अब नींद भी कहाँ बची है...
रूह की खोज में चार कदम चले तो देखा वहां तो वो भी खड़ा है जिसको हमने कभी पत्थर दिल कहा था;
आज वो मुझे देख कर मुस्का रहा है, कहता है, तू भी वहीँ है जहाँ मैं था, तू भी वही है जो मैं हूँ. 
...वही तो नहीं हूँ मैं, वहीँ तो नहीं हूँ मैं. 
...तारों से अब बातें नहीं होती क्यूंकि मैंने चाँद की राह देखि थी...अब तो चाँद से भी बैर किया है. 

...आधे आधे पूरे नहीं होते, आँखें मूंदु भी तो क्या? नींद के शहर में ही सपनों का ठीकाना है. 

...वो मेरी नींदों का हिसाब रखने लगा है, पर सपनों के सौदागर तू रातों को कहाँ खोया रहता है? 



p.s. try not making sense of the lines above, it is gibberish at best.


8 comments:

  1. I cannot read Hindi, so had to go to google translate to decipher its meaning in urdu....In the english translation, lots of the essence was lost of course.
    What a beautiful piece of poetry....reminded me of moonlit nights adorned with stars and memories of an unforgettable love.

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  2. I am flattered, thanks for the appreciation.

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  3. nope. Insomnia ka chakkar hai.

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    1. maine to bas suna thaa pyar main neendein udd jati hain,aapkee kyun udd gayi

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    2. architect hoon na, neendein to kaafi pehle se udi hui hain.

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    3. hey bhagwaan aap to jaldee se theek ho jao :p

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  4. don't agree with the "gibberish" part-though pretty close to you at your "best"

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