21 Aug 2009

न सुबह हुई...
न कल की रात ढली.
आज भी कल में रहते हैं,
जीने की कोशिश में जैसे, साँसें गिनते रहते हैं.

कभी उखडी साँसें,
कभी मंद सी हो गईं.
आज मौसम बी कुछ मंद सा है,
जैसे दबी दबी सी साँसें मेरी...

तूफ़ान की तबाही और उसके बाद सन्नाटा,
ये चीखती खामोशी कैसी...

1 comment:

  1. wah wah...!

    Bhavika ji ...ha ha

    cheekhti Khamoshi kaisi...?

    good one ...

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